Saturday, September 26, 2009

आलसी चांद

आलसी चांदआज बहुत दिनों बाद निकलाबादल की कुर्सी पे टेक लगा कर बैठ गयाबेशरम चाँदपूरी शाम हमें घूरता रहालाज से लाल चेहरा...संदली शाम में घुलता रहागुलाबी सितारे आँख मिचौली खेलने लगेसारी शाम वो घास खोदता रहाग्लेशियर से जिस्म पिघलते रहेमिट्टी में छोटी छोटी नदियाँ बहने लगींखिलखिलाती गुनगुनाती...छोटी छोटी फ्राक पहने हुये लड़कियाँअंगूठा दिखाकर चिढ़ाती रहीमैं तितलियों के पीछे भागी बहुतवो उंचे आसमानों में जाती रहींचाँद भी मुट्ठी से फिसलता रहाअंजुरी में उठा कर तुम्हारा अहसासमैं पलकों पे होंठों पे रखती रहीतुम जाने कहॉ खोये खोये रहेपुरवा तुम्हारी बाहें बन करमेरी मुस्कुराहटें दुलराती रहींआँख भीगी भीगी रहीलबों पर धुआँ धुआँ सा रहामैं तरसती रही तुम तरसते रहेएक शाम के धागे उलझते रहे AHSAS

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