Saturday, July 31, 2010

जान कर भी वो मुझे जान ना पाए,

जान कर भी वो मुझे जान ना पाए,

आज तक वो मुझे पेहछान ना पाए,

ख़ुद ही कर ली बेवफ़ाई हम,

ताकि उनपर कोई इल्ज़ाम ना आए…

नाकाम सी कोशिश किया करते हैं,

हम हैं की उनसे प्यार किया करते हैं,

खुदा ने तकदीर मे एक टूटा तारा नही लिखा,

और हम हैं की चाँद की आरज़ू किया करते हैं …

मिलना इतिफ़ाक था बिछड़ना नसीब था

वो उतना हे दूर्र हो गया जितना क़रीब था

हम उसको देखने के लिए तरसते ही रहे

जिस शाक्स की हथेली पे हमारा नसीब था

मेरे दिल की किताब को पढ़ना कभी,

सपनो मे आके मुझ से मिलना कभी

मैने दुनिया सजाई है तेरे लिए,AHSAS

No comments:

Post a Comment