Saturday, December 4, 2010
इक दिन खुद को तोड़ के देखो
इक दिन खुद को तोड़ के देखो
सारे बंधन छोड़ के देखो
जिनकी राह तका करते हो
खुद ही उन तक दौड़ के देखो
अलग- अलग तुम क्यों रहते हो
दिल से दिल को जोड़ के देखो
इन राहों से बचते हो तुम
इन राहों को मोड़ के देखो
सब गम इक पल में भागेंगे
माँ की बाहें ओढ़ के देखो
कितना कुछ बेकार भरा है
दिल की गागर फोड़ के देखो
सब के ईमाँ सोए से हैं
दुनिया को झकझोर के देखो
तुम्हे शिकायत है दुनिया से
‘अहसास ’ ज़हन निचोड़ के देखो।
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