Saturday, December 4, 2010

परछाई सा विलीन हो जाऊंगा


जब हर शब्द केवल वेदना दे हर गीत उदास लगे तब सिर्फ एक बार पुकारना मेरा नाम जब तपती दोपहर चुभने लगे मुस्कान फीकी पड़ने लगे तब सिर्फ एक बार करना याद जब चाँद निकले ही ना बादलों से और रात बहुत गहरी लगे तब सिर्फ एक बार थामना मेरा हाथ मैं हर मोड़ पर मिलूँगा तुमसे मील का पत्थर बनकर मैं साथ चलूँगा कड़ी धूप में वटवृक्ष की छाया बनकर जब मिल जाए मंजिल तुमको और तुम ना देखना चाहो मुड़कर मैं परछाई-सी विलीन हो जाउंगा ... अहसास

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