Tuesday, April 6, 2010

खुद से पूछती हो क्या मै सुन्दर हू

खुद से पूछती हो क्या मै सुन्दर हू ..आईने की तरह लेकिन मै तुम्हे एकटक निहारते रह जाता हू तुम्हारे हर रूप को बहते जल की प्यासी बूंदों की तरह पीते रह जाता हू वृक्ष की टहनियों की तरह तुम्हारे करीब आते ही तुम्हे छूने के लिए झुकने लग जाता हू और तुम्हे पता ही नही चलता किमै तुम्हारी सुन्दरता की तारीफ़ कर रहा हू बिलकूल वैसे ही जैसे रिमझिम वर्षा से भींगे फूलो का चेहेरा देखकर आकाश इंद्र धनुष -हो जाया करता है भोर का सामीप्य पा पंछियों की तरह जैसे खुश हो मेरे मन में तुम्हे देखते ही पंख ऊग आते है और मुझे -उड़ने का भ्रम होने लगता है किसी पवित्र ग्रन्थ की श्लोक की तरह -तुम मुझे याद आने लगती हो तुम्हारी आभा से मै खुद कमल सा खिल जाता हू और मेरा मन अभिभूत हो दुहराता है तुम तो बहुत खुबसूरत हो

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