बचपन से लेकर ..आज तक तुम अचानक पहले भी और आज भी ....
कभी गर्म गर्म मूंगफल्लियो कों मेरे जेब में भरते ही नमक और मिर्ची सहित एक कागज़ के पतंग की तरह उड़ जाया करती हो और मेरी शाम ..बेस्वाद हो जाया करती
हैं या मेरी किसी किताब पर चढी सुन्दर जिल्द हुवा करती थी
मेरे स्कूल के दिनों में ..बरसात में अपने सीने में उसे छिपाकर लाते समय भींग कर उखड जाया करती थी और तब उस रात मैं होम वर्क नही कर पाता था तुम वही मेरी प्यारी उखड़ी हुवी वापस मिल गयी मेरी सुन्दर जिल्द हो या तुम वही ...लौट कर ..आ गयी पतंग हो जिसके पास मेरे लिये नमक भी हैं और मिर्ची भी
Tuesday, April 6, 2010
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