अब नया दीपक जलाया जाएगा
फिर किसी से दिल लगाया जाएगा चाँद गर साथी न मेरा बन सकेसाथ सूरज का निभाया जाएगा
रस्म-ए-रुखसत को निभाने के लिए फूल आँखों का चढ़ाया जाएगा
कर भला कितना भी दुनिया में मगर मरने पे ही बुत बनाया जाएगा
आईना सूरत बदलने जब लगे ख़ुद को फिर कैसे बचाया जाएगा
मेरी अलबम कुछ करीने से लगे उनको पहलू में बिठाया जाएगा
Tuesday, April 6, 2010
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